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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:24

“चार्वाक दर्शन कहता है, ‘शरीर’ सुख भोगने का हेतु है – यावत् जीवेत सुखम् जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् | कृष्ण कह रहे हैं कि शरीर को मैं मान कर सुख और शान्ति की सिर्फ़ कल्पना ही हो सकती है – देहाभिमान से मुक्ति ही परम-उपाय है | ” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:22-23

“समाधि भी तो स्थाई नहीं – लगेगी और टूटेगी। तुर्या या चौथा ही समाधान है। इसीलये मैं हमेशा कहता हूँ, जीते जी अपना चौथा कर डालो तो ही परम आनंद, मुक्ति, आह्लाद , प्रह्लाद ! ” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:21

“जिस दिन यह थोड़ा सा भी स्पष्ट हुआ कि यह शरीर मैं नहीं हूँ बस उसी क्षण मृत्यु समाप्त हो जाती है, वास्तविक यात्रा प्रारम्भ होती है। उसके पहले जो करते हो सब तैयारी ही है इससे अधिक और कुछ नहीं। ” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:20

“सभी ग्रन्थ, गुरु और ज्ञानी बार-बार कहते हैं “यह शरीर तुम नहीं हो” | ज़रा इसे अपने जीवन में परखें तो सही। जिस दिन यह थोड़ा सा भी स्पष्ट हुआ कि यह शरीर मैं नहीं हूँ बस उसी क्षण अपनी आध्यात्म यात्रा का श्री गणेश हुआ समझो। उसके पहले जो करते हो सब तैयारी ही है और कुछ नहीं। ” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:19

“गीता मूक रूप से यह उद्घोष करती है कि कोई यदि मेरे एक भी सारगर्भित श्लोक को अपने जीवन में परख लें तो वह पार हो जायेगा। पर कोई ही शिष्य उस जौहरी के समान होता है जो गुरु द्वारा दिए गए तत्व-ज्ञान को अपने अनुभव की कसौटी पर घिस-रगड़ कर परखता है।” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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