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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:19

“गीता मूक रूप से यह उद्घोष करती है कि कोई यदि मेरे एक भी सारगर्भित श्लोक को अपने जीवन में परख लें तो वह पार हो जायेगा। पर कोई ही शिष्य उस जौहरी के समान होता है जो गुरु द्वारा दिए गए तत्व-ज्ञान को अपने अनुभव की कसौटी पर घिस-रगड़ कर परखता है।” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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The Gita: Srimad Bhagwadgita: श्रीमद्भगवद्गीता : Chapter 2:18

“कोई विरला ही शिष्य तत्व-ज्ञान के हेतु गुरु की शरण में होता है, वास्तव में तो वह अपने दुःख, अन्तर्द्वन्द, हताशा व जीवन में अंधकार की पीड़ा के निवारण की आकांक्षा से ही आता है। यह तो गुरु की विशेषता है जो इस शान्ति-समन्वय व सुख के खोजी को वह परम ज्ञान की अभीप्सा में परिवर्तित कर देता है। गुरु के शब्दों में वह शक्ति होनी चाहिए जो आगन्तुक पीड़ित शिष्य के अंतरतम को उद्वेलित कर सके। फिर कृष्ण तो स्वयं गुरुश्रेष्ठ हैं – अपने वचनों में शब्दों का सटीक चुनाव कृष्ण की वह कला है जो उन्हें परम-विशिष्ट बनाती है। युद्ध-भूमि में तत्त्व-ज्ञान देना कोई साधारण बात नहीं – शायद ही इतिहास में इसके पहले ऐसा कोई विवरण मिले। पर कृष्ण जैसा कुशल वक्ता गुरु-रूप में प्रकट होता है तो यह भी संभव कर देता है।” – आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ Continue reading

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