शिव के पांच मुखों में तत्त्व शक्ति विज्ञान के सिद्धांत!

आज बात करते हैं शिव के पांच स्वरूपों की – शिव पांच मुखों के रूप में माने गए हैं। शास्त्रों की ओर देखें तो भगवान वेद व्यास द्वारा रचित महाशिव पुराण की शतरुद्र संहिता का आधार लेकर सूत जी ने शिव के मुख्य पांच स्वरूपों का ही वर्णन किया था। हमारी (कश्मीर) शैवआगम (कुल, समय व मिश्र), वाम व दक्षिण परम्पराओं के अनुसार शिव भी इस सृष्टि को संयमन करने में शिव स्वयं अपनी ही शक्ति के रूप में कुल पांच तरह से कार्य करते हैं जिनमें सृजन, पोषण, संहार, अनुग्रह, निग्रह, गोपन आदि हैं। वैसे तो हर देवता ही पांच शक्तियों का घनीकृत विग्रह है तो सिद्धांततः शिव क्यों नहीं?

शिव के इन पांच मुखों के नाम हैं – ईशान, तत्पुरुष, सद्योजात, अघोर एवं  वामदेव। आप में से जो आचार्य जी के शिव-सूत्र व सौंदर्य लहरी पर प्रवचन नियमित रूप से श्रवण कर रहे हैं वे इन्हे सत-चित-इच्छा-ज्ञान-क्रिया आदि से भी जोड़कर देख सकते हैं। तत्त्व-शक्ति विज्ञान के सिद्धांतों के साथ यदि हम इन्हे संयुक्त करके देखें तो ये स्वरुप पञ्च-महाभूतों व पांच-चक्रों से भी सम्बंधित हैं। कैसे?

एक-एक स्वरुप के बारे में संक्षिप्त चर्चा करते हैं।

सद्योजात (इच्छा)

शिव का यह स्वरूप इच्छा शक्ति से सम्बंधित है। यह विग्रह बड़ा ही विचित्र है क्यों कि शिव अपने इस स्वरूप में  खिन्न और प्रसन्न, दोनों ही मुद्राओं में प्रतीत होते हैं। यह स्वाभाविक ही है, इच्छापूर्ति प्रसन्नता और इच्छा का अपूर्ण रह जाना खिन्नता या दुःख का कारण बनता है। कहते हैं कि शिव के इस स्वरूप में उनके भीतर की क्रोधाग्नि को बाहर निकालने की सामर्थ्य है। जैसा मैं आप सभी को कहता हूँ कि इच्छा के पूर्ण न होने पर पहले तो दुःख परन्तु अत्यंत अल्पकाल में क्रोध में परिणित हो जाता है। अतः इस स्वरुप में उनके अंदर क्रोध को प्रकट करने की संभावना छिपी हुई है जो समय पर प्रकट भी होती है। पांच मुखों वाले शिवलिंग या विग्रह में इस मुख से शिव पश्चिम दिशा की ओर देखते हैं। पश्चिम अर्थात सूर्य-ज्योति, प्रकाश से विपरीत।

कुछ शास्त्र कहते हैं जब ब्रह्माजी सृष्टि की रचना में  प्रवृत्त होने को थे तब शिव ने उन्हें अपना आशीर्वाद इसी रूप में प्रदान किया था। कोई कोई शिव के इस स्वरुप को श्वेत वर्ण में कल्पित करते हैं। इसका कोई बड़ा अर्थ नहीं हैं सिवाय इसके कि मणिपुर चक्र – जो कि इच्छाओं के केंद्र है सभी रंगों की मणियों से परिपूरित है और उनके सम्मिलित प्रकाश में श्वेत वर्ण का आभास होता है। यहां हम अपने भीतरी अहम और क्रोध की पुष्टि करते हैं। शिव के इस श्वेत स्वरूप का संबंध मणिपुर चक्र से है।

वामदेव

शिव का अगला स्वरूप वामदेव, क्रिया-शक्ति प्रधान पंचमुखी शिवलिंग के दाहिनी ओर का यह शिवमुख उत्तरी दिशा की ओर देखता है। यह संरक्षण-पालन से सम्बद्ध है। कवित्व, दया और पालन से युक्त शिव अपने इस स्वरूप में कवि-नट व लोक-रंजक हैं।

अनाहत चक्र में वायु तत्त्व से जुड़े शिव के इस स्वरूप का रंग लाल भी कहा गया है। उनका यह मुख, माया व श्रृंगार-सौंदर्य से जुड़ा है। कुछ ग्रन्थ कहते हैं कि भगवान वामदेव दुखों और पीड़ाओं से भी मुक्त करते हैं। माया शक्ति के चंगुल में फंसे अज्ञानी जीवों को सुख, अर्थ-कामादि प्राप्ति व रोग-दुःख-जरा-व्याधि के निवारण की इच्छाएं यदि पूर्ण होती रहें तो यही उनके लिए मोक्ष-तुल्य होता है। वामदेव स्वरुप उन्हें माया के संसार में माया के नियमों का पालन करते हुए उनके नित्य कष्टों से जीवों रक्षित करता है.

अघोर

शिव का यह मुख दक्षिण की ओर देखता हुआ ज्ञान शक्ति का प्राधान्य रखता है। शिव का यह स्वरूप स्वाधिष्ठान चक्र, जल-तत्त्व में व्याप्त तथा प्राणमय-कोष का नियंत्रक है। तत्त्वों के रंगों से अलग शिव यहां धूम्र वर्ण में अपनी रूद्र- शक्ति को प्रकट करते हैं। अहंकार के संयमन एवं प्राण-जनित सूक्ष्म व्याधिओं व बाधाओं के निवारण में तत्पर शिव अत्यंत सहज, सरल व पवित्र मनोभावों के स्वामी है।

जीवन में अत्यंत सरलता यदि प्राप्त हो जाये, समस्त कुटिलता, स्वार्थ एवं इच्छा-विशेष का त्याग हो सके अर्थात परम-वैराग्य सिद्ध हो तभी पूर्ण-ज्ञान की प्राप्ति होती है। ह्रदय की सरलता ही सबसे कठिन है। केवल वैराग्य ही इसमें सहायक है। इसी परम वैराग्य की सिद्धि हेतु १४ वर्षों का अखण्ड श्मशान वास कई अघोर गुरु निश्चित करते हैं।

तत्पुरुष

यह शिव-मुख पूर्व दिशा की ओर देखता हुआ परमात्म-शक्ति का ही प्रतीक हैं। यहाँ शिव का यह स्वरूप अनंत-प्रकाश युक्त, आनंद शक्ति से लसित आत्म तत्त्व के मूल स्थान अर्थात मूलाधार चक्र को भी प्रदर्शित करते हैं। आत्मा के अणु स्वरुप, सुनहरे पीले रंग के इस शिव मुख का संबंध पृथ्वी तत्त्व से भी है। जीवन की स्थिरता, एकाग्रता एवं विचारों की उच्छृंखलता से मुक्ति हेतु शिव के इस मुख पर ध्यान अर्थात पूर्व दिशा में उदित होते शिव-प्रकाश के प्रतिनिधि सूर्य देवता पर भी ध्यान इंगित है। विद्यार्थियों के ज्ञान-विज्ञान, अपरा-तथा परा-विद्या में इच्छुक साधकों एवं विद्या से ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भी आप को शिव का यह स्वरुप प्रिय होना ही चाहिए।

ईशान

यहाँ क्षैतिज प्रपञ्च व लौकिक विस्तार में व्याप्त होते हुए उससे सर्वथा भिन्न शिव अपने इस मुख से ऊपर की आकाश की ओर देख रहे हैं। यह स्वरुप आनंदमय कोष व विशुद्ध चक्र में स्थित इस ब्रह्माण्ड की चेतना जिस आकाश तत्त्व से उदित हुई है, जिसे वैज्ञानिक अभी तक एक निर्वात या खाली-स्थान मानते थे, अपने इस स्वरूप में शिव उसी अनवरत उसी आकाश की ओर देखते हैं जिसमे और जिससे इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का उदय, स्थिति तथा विलय होता है। शिव का ईशान मुख वह सदाशिव है, जो ब्रह्माण्ड के हर अणु, हर दिशा, व हर प्राणी व वस्तु में सत के रूप में विद्यमान हैं तथा उससे परे भी है।

शिवोहम!

माँ शक्ति देवप्रिया

"हमारे जीवन के मूल में इच्छा है। सामान्य व्यक्ति को ऐसा प्रतीत होता है कि 
क्रिया करने के लिए इच्छा एक परम आवश्यकता है। इच्छाओं की पूर्ति की दिशा 
में किये गए प्रयत्न एवं कर्म में एक अधूरापन हमेशा छूट जाता है। कुछ भी कर 
लो, कुछ भी प्राप्त हो जाये अंतर में एक आग जलती ही रहती है। शिव की सृष्टि 
बिलकुल अलग है - वहां इच्छा तो है परन्तु वह असीमित आनंद की अभिव्यक्ति 
है। क्रिया है परन्तु कोई उद्देश्य नहीं। उद्देश्य है आनंद का उत्सव न कि अभीप्सा 
की जलन।"

(आचार्य अज्ञातदर्शन आनंद नाथ जी की सौंदर्य लहरी पर चर्चा से उद्धृत)
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About Shakti Devpriya

An initiate of Kaula Tantra tradition. The sole purpose of my beloved consort AD and me is to spread the pure divine knowledge to the masses through Tattva Shakti Vigyaan and try to make every life more beautiful and blissful.
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