“मृत्यु से डर कैसा? हाँ, यदि जीवन ही न जिया हो, आनंद का प्राकट्य ही नहीं हुआ जीवन में अभी तक, सुखों के पल क्षण भर के ही रहे तो फिर स्वाभाविक है मृत्यु के सामने उसे अपने जीवन को फिर नए सिरे से जीने की चाहत हो और ऐसा हर व्यक्ति लम्बा और लम्बा जीना चाहेगा। ” माँ शक्ति देवप्रिया जी ने सही नब्ज़ पकड़ी है..

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
माँ भगवती की लीला देखो, उस छोटे से ‘विषाणु कोरोना’ ने जिनको मज़हब या धर्म से कोई ताल्लुक नहीं उनको भी धार्मिक बना दिया। उन लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया जो मानते थे कि मनुष्य सर्वशक्तिमान है और जब चाहे, प्रकृति को अपने क़दमों के नीचे रौंद कर अपनी विजय-यात्रा पर आगे बढ़ता ही जायेगा। पर हुआ क्या ? उस माँ की प्रकृति का एक कटाक्ष और लगभग सारी दुनिया अब क़ैद है अपनी ज़द में… अपनी और अपनों की सलामती की दुआ मांगती हुई। सब कुछ थम सा गया है इस नीले ग्रह पर। जय अम्बे श्री!
वैज्ञानिक कहते हैं कि और सच भी यही है कि अभी तक इस जंगल की आग से भी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाली इस महामारी का कोई इलाज़ नहीं है उनके पास। कोशिश जारी है कि…
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